The importance of unicorn in Indus script can be understood from the fact that more than 1100 out of 2200 existing seals bear the picture of a unicorn. Why only one horn? Did any such type of antelope exist 5000 years ago ? or it is simply a myth.  The mystery can be solved with the help of a vedic statement that sun rays are it’s horns. Further, it has been stated that when one sits in penances , then his consciousness becomes like a sun which sends rays up and down. One can get disturbed with heat of these rays . Therefore, one is supposed to arrange for cooling of this heat. It has been stated that the downward rays of this sun were cooled with the help of flow of air. The upward rays were cooled down by putting moon above. It can be thought that the downward rays mentioned in sacred text may be providing energy to our senses. What is the function of upward rays, is not yet clear. Therefore, when Indus script seas depict unicorn, it may mean that the downward flow of rays from the sun has been stopped. In human beings, a lock of hair at the crown of the head is considered as his horn. Normally, all hair are shorn off except this particular lock of hair.  At the end of penances, even this lock is shorn off. This will mean that now no energy can flow out of the sun. All energy is conserved inside the sun, a phenomenon which is not possible in physical world.

प्रथम लिखित 26-11-2010ई(मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी, विक्रम संवत् 2067)

शृङ्ग

टिप्पणी सिन्धु सभ्यता की 2200 के लगभग मुद्राओं में 1100 ऐसी हैं जिनके ऊपर एकशृङ्गी मृग का चित्र बना है और उन पर कुछ लेख अंकित है । शृङ्ग का रहस्य जैमिनीय ब्राह्मण 2.145 के आधार पर खुल सकता है । कहा गया है कि यह जो आदित्य की रश्मियां हैं, यह इसके शृङ्ग हैं । जैमिनीय ब्राह्मण में ही गवामयन याग के संदर्भ में आता है कि आदित्य बहुत तप गया, उसके ताप से प्रजा त्रस्त होने लगी । तब देवों ने उसके ताप की शान्ति का प्रबन्ध किया। जो आदित्य की नीचे जाने वाली रश्मियां हैं, उनकी शान्ति के लिए वायु का प्रवाह किया । जो ऊपर जाने वाली रश्मियां हैं, उनकी शीतलता के लिए सूर्य के ऊपर चन्द्रमा को रखा । यह कथन संकेत करता है कि हमारी उच्चतम चेतना रूपी जो सूर्य है, उससे दो प्रकार की रश्मियां निकल रही हैं । नीचे जाने वाली रश्मियां हमारी इन्द्रियों को शक्ति प्रदान कर रही हैं । ऊपर जाने वाली रश्मियां देव स्तर का निर्माण कैसे कर रही हैं, यह अभी अस्पष्ट है । सिन्धु सभ्यता की मुद्राओं में जब एकशृङ्गी मृग का प्रदर्शन किया जाता है तो उससे तात्पर्य होगा कि इन्द्रियों को मिलने वाली रश्मियों को समाप्त कर दिया गया है, अब केवल ऊर्ध्वमुखी विकास ही रह गया है । जैमिनीय ब्राह्मण 2.374 से संकेत मिलता है कि मनुष्य में उसकी शिखा शृङ्ग का रूप है । साधना की एक स्थिति में शिखा का भी वपन कर दिया जाता है । इसका अर्थ होगा कि अब सूर्य की सारी ऊर्जा सुरक्षित है, उससे रश्मियों के रूप में किसी भी ऊर्जा का क्षय नहीं हो रहा है ।

     कर्मकाण्ड में मृगशृङ्ग का एक और उपयोग है । यजमान मृगचर्म या कृष्णाजिन ओढे रखता है तथा एक मृगशृङ्ग अपनी कटि में लटकाए रखता है । उसे जब भी खुजली लगती है और उसे खुजाना होता है, वह उस मृगशृङ्ग द्वारा ही खुजा सकता है, सीधे हाथ से नहीं । गोपथ ब्राह्मण 1.3.23 में इस खुजाने को कषाना नाम दिया गया है । कष शब्द से कर्षण का संकेत मिलता है । जहां भी रोमांच आदि किसी अतिरिक्त ऊर्जा का अतिरेक होगा, साधक अपने शृङ्ग द्वारा कर्षण करके उसको शान्त करेगा ।

अंग्रेजी भाषा में एकशृङ्गी मृग को unicorn कहा जाता है । अंग्रेजी भाषा का horn  शब्द लैटिन भाषा में corn है क्योंकि क का रूपान्तर ह में हो जाता है ।

सिन्धु सभ्यता की मुद्राओं में प्रायः पशुओं के आगे घास खाने के लिए एक पात्र रखा रहता है जिसे लोकभाषा में नांदी कहते हैं । चाहे सिंह आदि मांसभक्षी पशु हों या एकशृङ्गी आदि तृणभक्षी पशु, यह नांदी पशु के मुख के आगे रखी हुई दिखाई जाती है । डा. कल्याणरमण इसकी व्याख्या संभवतः ऐसे कर रहे हैं कि यह लोहार या अयस्कार की भट्टी है जिसमें पडे लोहे का अयस्कार को परिष्कार करना है । एकशृङ्गी मृग के संदर्भ में डा. कल्याणरमण के इस कथन को व्यापक अर्थों में लिया जा सकता है ।



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