Decipherment of 26 - letter long Indus inscription

First published : 10-9-08(Bhaadrapada shukla dashamee, Vikrama samvat 2065)

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सिन्धु सभ्यता का सबसे बडा लेख

- मधुसूदन मिश्र

धी

ब्र सी

चि ग्र

          इस लेख में २६ अक्षर हैं जो तीन पंक्तियों में लिखे गए हैं । लेख संग्रह में यह दो बार आए हैं । कईं छोटे - छोटे लेख तो बार - बार आते हैं, पर इतने बडे लेख का दो बार आना महत्त्वपूर्ण है इस के अर्थ पर जरा विचार करे

          दाहिने से, पहली पंक्ति का पहला अक्षर पढा जा सकता है, क्योंकि दूसरा अक्षर है और दोनों संस्कृत के धातु में झलकते हैं । का संस्कृत में चाहे अर्थ कुछ भी हो, एक अप्रचलित शब्द रुभेटि के आधार पर कह सकते हैं कि = कुहरा, कुहासा रु का अर्थ जब प्रकाश है तो कुहरा हो सकता है अगले (ज्योति) का विशेषण है और दोनों सप्तमी विभक्ति से संबंध रखते हैं । = कुहरे वाले आकाश में धी(प्रकाश) अगली क्रिया ( होना ) का कर्ता है जो भूतक में है धी - = प्रकाश था तीन (तारे ) बहुवचन के लिए है, और = चमकना ग ग ग = तारे चमक रहे थे अब पूरी पंक्ति का अर्थ यह है - कुहरे वाले आकाश में प्रकाश था, (क्योंकि) तारे चमक रहे थे

          दूसरी पंक्ति के पहले संदेहास्पद अक्षर को पढेंगे, दूसरा अक्षर (सूर्य) है क्रिया के कारण यह वाक्य अगले दो वाक्यों से जुडा है = चूंकि सूरज क्षितिज के उस पार चला गया था चिडिया वाला चिह्न सी पढा जाएगा, उसके पहले वाला ब्र सी के उडने से संबंध होने के कारण ब्र का अर्थ होगा पक्षी ब्र सी = पक्षी सब उड(कर घोंसले में जा) रहे थे (क्योंकि शाम हो यी थी ) दूसरे वाक्य में र का अर्थ है दौडना, खेलना अन्धकार में दौडने खेलने वाले उल्लू हैं, क्योंकि अंधेरे में वे प्रसन्न रहते हैं । = (दूसरी ओर) उल्लू सब आनन्द मना रहे थे ये सब अशुभ संकेत मालूम पडते थे

          तीसरी पंक्ति में एक आज्ञार्थक वाक्य मालूम पडता है, क्योंकि आज भी बोलचाल में आज्ञार्थक है = सुनिये यह शृणु वाले सुनो से कुछ अलग अर्थ रखता है और चेतावनी देता  है चि (बहुत देर) (बीत गया ) चिर तो संस्कृत में भी चला आया है (आवाज) ( प्रकाश) चि = बहुत देर तक ठनका ठनकता रहा, बिजली चमकती रही भयानक रात थी वह ग्र = गर्भ में सूर्य था - पता नहीं, सूर्य कहां चला गया था वह अंधेरी रात बडी डरावनी लग रही थी ।           इन छोटे - छोटे आठ - दस वाक्यों में एक भयानक घटना का जोरदार चित्रण है जैसे छोटा बच्चा किसी घटना का ठीक - ठीक वर्णन नहीं कर सकता, उसी तरह प्राक् संस्कृत का यह बचपन वाला रूप है हम देखते हैं कि मानवीय भाषा का यह प्रथम चरण कितना नाज है उसे पृथक् - पद(isolating) ्टे कहते हैं । इसमें व्याकरण नहीं था, आने ही लगा था दूसरा ्टे युक्त पद (agglutinative) कहलाता है, जिसमें व्याकरण जाता है तीसरा ्टे श्लिष्टपद(inflectional) होता है जिसमें व्याकरण के तत्त्व शब्द में इस तरह जाते हैं कि उन्हें अलग करने में खू तक निकल जाता है वह खिरी पडाव वैदिक भाषा में देख सकते हैं ।

          इस छोटे से प्राक्संस्कृत के लेख में संस्कृत भाषा का बचपन तो झलकता ही है, उसकी आती हुई जवानी भी दिखाई देती है और संस्कृत के यौवन वाले रूप से तो हम परिचित हैं ही - ( होना - भूत ) स्त में बदला होगा, जिसका कोई प्रमाण शेष नहीं रहा लेकिन हिन्दी का 'था' इसी का उपलब्ध रूप है चि वाक्य संस्कृत के चिरम्, चिराय इत्यादि अव्ययों में दिखाई देता है

 


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