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There are about 25 Indus valley seals where elephant has been depicted, along with some inscriptions on these. These elephants are of two types - with horns and without horns. Most of the seals depict elephant with mouth on the right hand side. Only a few seals depict left - sided mouth( see explanation for these two forms ).

There is a seal  FEM 127where 'gha na  is written above the picture of right - mouth elephant. Ghana in Sanskrit means to densify. In sprituality, that which is thin is considered a sin. To eliminate sin, it is necessary to densify. This densification of lower levels of consciousness can be done with the help of the light of higher level of consciousness. This process, that is, the extension of light to lower levels has been symbolized by the trunk of an elephant. There is an elephant seal which bears the inscription shu raa cho gha, which literally means one who collects wine. The fondness of elephant for wine is well known. The conclusion is that the divine elephant derives wine, transforms it and sprinkles it in the form of nectar. In Sanskrit, Ghana is used for clouds. It is natural that a divine elephant will have this quality.

There is an elephant seal MIC 1370 which bears inscription ma sha ma yo sha. This can be deciphered on the basis of a mantra of Atharvaveda which states that mosquitoes  trouble elephant. Here mosquitoes should be taken as the life forces of mean nature. Elephant has to get rid of these mean type of life forces.

Seal no. 7234 bears inscription chi ha dho sha. Here dho may be in the sense of to prod. 

Seal  no. FEM 058 bears only inscription Tra. It's meaning may be derived on the basis of the famous story of elephant and crocodile in  Bhaagavata puraana(chapter 8). Here the elephant resides at the mountain having three peaks. Or the elephant may have three levels of consciousness - iron like, silver like and golden.

There is another word in Sanskrit - Gana. This word defies interpretation in normal way. It seems it can also be interpreted on the basis of Gha na.

Vedic and puraanic view of elephant

Comparison with elephant shapes on body chakras

First published : 21 - 7- 2008( Shraavana krishna triteeyaa, Vikrami samvat 2065)

 

 

हस्ती

टिप्पणी: सैन्धव लेखों के बारे में मेरा मत है कि हर पंक्ति एक वाक्य है जहां पंक्ति में केवल एक ही अक्षर पाया जाता है, तो वह आज्ञार्थक है जहां पंक्ति में दो अक्षर मिलते हैं, वहां पहला कर्त्ता है, दूसरा क्रिया जहां तीन अक्षर मिलते हैं, वहां पहला कर्त्ता, दूसरा कर्म और तीसरा क्रिया हो सकता है यदि पहला अक्षर अन्यकारक है तो दूसरा तीसरा कर्त्ता + क्रिया अनेक अक्षर वाले लेखों में कईं वाक्य होने की संभावना है कुछ अक्षर पद - समूह भी हैं जिनके आगे क्रिया है एक ही अक्षर कहीं क्रिया है, कहीं संज्ञा अनेक अक्षर वाली संज्ञा का विकास तब तक नहीं हुआ था - मधुसूदन मिश्र

 

सिन्धु घाटी की मुद्राओं में हाथी के चित्र वाली मुद्राएं भी प्राप्त होती हैं इन मुद्राओं पर कुछ अक्षर अंकित हैं एक हाथी की मुद्रा संख्या FEM १२७ पर ' ' अंकित है इसका अर्थ इस प्रकार लगाया जा सकता है कि सूर्य के लिए है और उस सूर्य के प्रकाश के प्राणों तक विस्तार के लिए इस प्रकार ण का साधारण अर्थ होगा - सूर्य चमकता है(The sun shines) आधुनिक काल की भाषा में इसे घन, बादल समझा जा सकता है लोहार के भारी हथौडे को भी घन कहा जाता है घन का एक अर्थ होगा किसी वस्तु को घनीभूत करना लेकिन जब मेघों के अर्थ में घन को लिया जाता है तो हो सकता है कि इसका अर्थ - , जो घनीभूत नहीं है, इस प्रकार किया गया हो जो घनीभूत नहीं है, वह , पाप कहलाता है ऋग्वेद की कईं ऋचाओं में नः वृत्राणां( . .९६.१८), नं वृत्राणां( . .४९.) आदि कथनों के माध्यम से घन शब्द का प्रयोग वृत्रों के हनन के लिए किया गया है वास्तव में यह कहा जा सकता है कि वृत्रों का हनन उनको घनीभूत करना ही है आधुनिक विज्ञान की भाषा में यह कहा जा सकता है कि जब कोई द्रव्य विरल अवस्था में रहता है तो उसमें अव्यवस्था, एण्ट्रांपी अधिक होती है एण्ट्रांपी को कम करने का उपाय है उस द्रव्य को घनीभूत करना

          संस्कृत साहित्य में हाथी का घन पर्याय विरल ही मिल सकता है आप्टे - गोडे के संस्कृत - अंग्रेजी कोश में नानः शब्द का एक अर्थ इन्द्र आदि के अतिरिक्त मदमस्त, उपद्रवग्रस्त हाथी भी दिया गया है प्रश्न यह उठता है कि सिन्धु मुद्रा में हाथी के चित्र पर घन लिखने की आवश्यकता क्यों पडी ? इसका उत्तर गणेश पुराण .५६.३१ से मिल सकता है जहां भ्रूशुण्डि नामक एक साधक को गणेश सदृश मुख प्राप्त हो गया इसका तात्पर्य यह हुआ कि सांकेतिक चित्रों में जो हाथी की सूंड दिखाई जा रही है, वह भ्रू - शुण्डि है भ्रूमध्य ज्योvति का स्थान है जहां साधक ज्योvति के दर्शन करते हैं इस ज्योvति का अनुभव करना बहुत कठिन नहीं है लेकिन कुछ साधक ऐसे भी हैं जो इस ज्योvति को भ्रूमध्य से चला कर सारे शरीर में घुमाते हैं और उन्हें अलग - अलग अनुभव होते हैं तन्त्र की भाषा में कहें तो यह कहा जा सकता है कि भ्रूमध्य की ज्योvति विज्ञानमय कोश का प्रतिनिधित्व करती है जिसे अन्नमय, प्राणमय और मनोमय कोशों में अवतरित कराना है भ्रूमध्य की यह ज्योvति ही वृत्रों का हनन करने वाली बन सकती है घन धातु दीप्ति अर्थ में है बृहदारण्यक उपनिषद ..१२ ..१३ में इस ब्रह्माण्ड को प्रज्ञानघन, विज्ञानघन, रसघन कहा गया है और इसकी उपमा ैन्ध घन से की गई है जैसे लवण जल में विलीन हो जाता है, उसका कोई अस्तित्व शेष नहीं रहता, बाहर - अन्दर सब रसमय हो जाता है, ऐसे ही प्रज्ञान, विज्ञान आदि हैं

          स्कन्द पुराण में घनवाहन गन्धर्व की कन्या के शापवश कुष्ठग्रस्त हो जाने की कथा है अन्यत्र इन्द्र, शिव आदि को घनवाहन कहा जाता है इसको दो अर्थों में लिया जा सकता है एक तो मेघ जिसके वाहन हैं, दूसरे हाथी जिसका वाहन है

          ऐसा प्रतीत होता है कि ण का एक रूप वैदिक साहित्य में गण शब्द के रूप में प्रकट हुआ है जिसके लिए पुराण विषय अनुक्रमणिका के अन्तर्गत गण शब्द पर टिप्पणी द्रष्टव्य है गण का अर्थ होगा ऐसा समूह जिससे किसी ऊर्जा का क्षय हो, अथवा ऐसा कहा जा सकता है कि जिसकी एण्ट्रांपी में वृद्धि हो

 

हस्ती के चित्र वाली एक अन्य मुद्रा १३७० पर मशमयोष अंकित है इस लेख की व्याख्या शौनकीय अथर्ववेद .३६. के निम्नलिखित मन्त्र के आधार पर की जा सकती है :

ये मा क्रोधयन्ति लपिता हस्तिनं मशक इव तानहं मन्ये दुर्हितान् जने अल्पशयूनिव ।।

मशक मच्छर या क्षुद्र प्राणों को कहते हैं यह क्षुद्र प्राण ही हाथी रूपी व्यक्तित्व में क्रोध उत्पन्न करते हैं इनसे मयः, शान्ति, आनन्द की प्राप्ति करनी है

          हाथी के चित्र वाली मुद्रा संख्या ७२३४ पर चिहढो लिखा है चिह अक्षर एकशृङ्गी मृगों वाली मुद्राओं पर भी प्रायः मिलता है हो सकता है कि इसका साम्य चिद् से हो चिह का एक सामान्य अर्थ 'निश्चय ही, निश्चित रूप से' आदि लगाया जा सकता है ढो का अर्थ कथासरित् सागर ..३५३ में 'हस्त्यरोहेण किता' के आधार पर हाथी को प्रेरित करना लिया जा सकता है

 

सिन्धु घाटी के चित्र FEM ०५८ पर केवल त्र अक्षर अंकित है भागवत पुराण के आठवें स्कन्ध में गज - ग्राह के आख्यान में गज का निवास त्रिकूट पर्वत बताया गया है इसके तीन कूट/शिखर रजतमय, लौहमय और हिरण्मय हैं इसका संकेत सिन्धु घाटी की मुद्रा पर त्र द्वारा दिया गया हो सकता है


                            सिन्धु मुद्रा MEH२२८ पर राचो अंकित है इसका अर्थ सुराचो कर सकते हैं क्योंकि हाथी को मदिरा बहुत प्रिय है चो का अर्थ चुने वाला लिया जा सकता है, अर्थात् जो सुरा को समेट कर अमृत प्रदान करता है

सिन्धु घाटी की हाथी वाली मुद्राओं पर अंकित अन्य कुछ लेख जिनका निर्वचन अभी नहीं हो पाया है :

मुद्रा संख्या लेख(दाएं से बां पठन)

 


१३६५  

  १३६६

१३६७ चि

१३६८ यू

१३६९ नि चि 

HTML clipboard  १३७३ - - -  

१३७४ क्ल? नि

१५३४ - नु यो

१५३५ हे? षि ?

२०५७ त्र चि

२१६९ - जि

२१७१ नु?

२२७८ णु -

२३०४ ष्ठ घ्र चि

२५०४ चि

२५१२(वामावर्त) - - चि

२५१७ गु

२५९० चि 

२८६८      ३०६० गि

४२२९ ष्ठ धी -

४२३० ज्ञ न्द यु 

४२३१


६१२० - न्द यु    ७२३४ ढो चि    ८०७२ चि

 


          मुद्रा संख्या २८६८ पर अंकित है जबकि मुद्रा संख्या ४२३१ पर अंकित है ( पठन दाएं से बां ) इ का अर्थ है रति, अथवा रति के विरुद्ध दिशा अरति, यास्क के शब्दों में इरा सिन्धु घाटी की मुद्रा यह संकेत देती है कि इस रति को इरा में बदलना है, ऊर्ध्वमुखी बनाना है ऊर्ध्वमुखी बनने पर यह क्रमशः गं(ज्ञान वाचक) और घं (घन वाचक) में रूपान्तरित होगी यह उल्लेखनीय है कि एकशृङ्गी मृग की मुद्राओं पर अंकन प्राप्त होता है हस्ती की मुद्रा में और जोड दिया गया है दूसरी ओर, अंकन के संदर्भ में ऐसी संभावना है कि हस्ती के माध्यम से गं, ज्ञान को में रूपान्तरित करना है डा. फतहसिंह के शब्दों में, ऊर्ध्वमुखी है, अग्नि की शक्ति है, जबकि अधोमुखी है, वर्षण करने वाला है

मुद्राओं की क्रम संख्या श्री ऐरावतम् महादेवन् की पुस्तक The Indus Script – Text, Concordance and Tables (Archaeological Survey of India, New Delhi, 1977) के अनुसार दी गई है

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The elephant may stand for abundance, massiveness, slow movement. It's colour suggests black clouds. The trunk stands for heavy showers. It's single tusk indicates prosperity for land. Therefore Ganesh is ekadanta. The elephant first takes water into trunk and then into mouth. This may suggest storing waters.

 
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